महागुरु
परिवर्तनकारी
हमारी पूर्णता की हद तक,
वे अपनी छेनी और हथौड़ी से हमें तराशते रहे।
वे हमें गढ़ते और चमकाते रहे
जब तक हमने नए जीवन में कदम नहीं रखा
गुरुदेव ने न केवल अपने स्वयं के
गुरुदेव ने न केवल स्वयं के दृष्टिकोण और गुणों के सुधार पर ध्यान केंद्रित किया, बल्कि अपने शिष्यों के बदलाव पर भी काम किया।
एक शिष्य, अशोक जी, अपने परिवर्तन की कहानी कुछ इस तरह सुनाते हैं। गर्म मिज़ाज़ होने के कारण, उनकी अक्सर लोगों के साथ मार-पीट होती रहती थी। गुरुदेव की सलाह के बावजूद, वह अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पा रहे थे। तीन साल तक, जब भी गुरुदेव ने उनसे पूछा, “बेटा, गुस्सा कम हुआ?” अशोक जी अपना सा मुंह लेकर उनके सामने खड़े रहते।
अपने गुरु की सलाह पर अमल न कर पाने के कारण खुद से नाराज अशोक जी ने अपने गुस्से को नियंत्रित करने का संकल्प लिया। तीन महीने तक उनका न तो किसी से विवाद हुआ, न ही उन्होंने अपना आपा खोया। हर बार जब वह गुड़गांव जाते, तो उनके मन में यह उम्मीद होती कि गुरुदेव उनके द्वारा की गई प्रगति के बारे में पूछेंगे, लेकिन गुरुदेव ने कभी ऐसा नहीं किया।
तीन महीने तक गुस्से पर संयम के बाद, अशोक जी का संकल्प टूट गया, जब उनके कारखाने के एक कर्मचारी को नकदी चोरी करते पकड़ा गया। अपने अपराध को स्वीकार करने और चुराए हुए रुपए वापस कर देने के अनुरोध के बावजूद, कर्मचारी ने गलती मानने से इनकार कर दिया। अशोक जी को बहुत गुस्सा आ गया और उन्होंने कर्मचारी को पीट दिया। जब उन्होंने एक वस्तु उठाकर कर्मचारी को फेंककर मारने का प्रयास किया, तो उन्हें लगा कि एक अदृश्य शक्ति उन्हें यह हरकत करने से रोक रही है।
जब कुछ दिनों बाद अशोक जी गुड़गांव आए, तो गुरुदेव ने उनसे पूछा, “बेटा, गुस्सा कम हुआ?” वह गलती कबूल करने के इरादे से गुरुदेव के पास गए, लेकिन गुरुदेव ने अपने होंठों पर उंगली रखकर इशारे से अशोक जी को चुप रहने को कहा। कमरे में मौजूद लोगों के चले जाने के बाद, गुरुदेव ने कहा, “भले ही आपको इस बात का विश्वास हो कि किसी ने आपके बक्से से पैसे निकाले हैं, परंतु यदि वह स्वयं को निर्दोष बता रहा हो तो आपको विश्वास करना चाहिए।”
सर्वव्यापी महागुरु को पहले से ही पता था कि उनके शिष्य ने क्या किया है! अपनी गलतियों को महसूस करते हुए, अशोक जी ने बेहतरी के लिए अपना दृष्टिकोण बदल दिया। अब वह आलोचना से परेशान नहीं होते और न ही दूसरों की अशिष्टता से उनका मूड प्रभावित होता है।
जहां गुरुदेव ने अपने सौम्य स्पर्श का प्रयोग अशोक जी को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण का पाठ पढ़ाने के लिए किया, वहीं गिरी जी के लिए यह इतना आसान नहीं था। गिरि जी मुंबई के बाहरी इलाके में एक कारखाने चलते थे। उन्होंने अपने एक कर्मचारी को थप्पड़ मार दिया था, जिसने कार्यालय के कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार किया था। उस शाम जब गिरी जी घर पहुँचे, तो उनकी बहन ने घर का दरवाजा खोलते हुए कहा, “गुरुदेव फोन पर हैं और वह आपसे बात करना चाहते हैं।” गुरुदेव ने उनके हिंसक व्यवहार के लिए उन्हें डांटा और चेतावनी दी कि वह उस हाथ को तोड़ देंगे जिससे उन्होंने कर्मचारी को थप्पड़ मारा था। गिरि जी को पता था कि ऐसा होकर रहेगा।
अनहोनी के डर से, गिरि जी तीन दिनों तक अपने घर से बाहर नहीं निकले। चौथी सुबह, उनके पिता ने उनसे कहा कि वो काम से भागना छोड़कर, अपने पेशेवर कर्तव्यों का पालन करे। एक सतर्क व्यक्ति होने के नाते, गिरि जी ने गुरुदेव की चेतावनी के संभावित प्रभाव को रोकने के लिए अपने पिता और चाचा के साथ कार के मध्य पीछे की सीट पर बैठने पर जोर दिया। सुरक्षित रूप से फैक्टरी पहुँचने पर, उन्होंने राहत की सांस ली।
शाम को, गिरि जी के पिता ने उन्हें किसी काम के लिए बगल के कारखाने में जाने के लिए कहा। यह दूरी महज 3 मिनट की थी। गिरि जी ने स्कूटर से जाने का फैसला किया, जिसे उन्होंने बहुत धीमी गति से चलाया। जैसे ही वह पार्किंग में पहुंचे, तभी अचानक एक मोटर साइकिल ने उन्हें टक्कर मार दी। फलस्वरूप वही हाथ टूट गया जिससे उन्होंने कर्मचारी को थप्पड़ मारा था।
ये घटना गिरी जी के लिए बहुत बड़ा सबक साबित हुआ।
गुड़गांव में मेरी आध्यात्मिक यात्रा के शुरुआती दिनों में, मोहन सिंह चीरा नाम का व्यक्ति मुझे धमकाता रहता था। मैं प्रोटोकॉल नहीं जानता था और ना ही तमाशा बनाना चाहता था, इसलिए मैं खामोश रहा और उसे वह करने दिया, जो वह कर रहा था। भले ही चीरा के इरादे सही थे, लेकिन उनके अक्खड़ तरीके ने मेरे आत्मविश्वास को खत्म कर दिया।
एक दिन, जब चीरा मुझे आदेश दे रहा था, गुरुदेव ने मुझे अपने कमरे में बुलाया। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा कि किसी को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए। मुझे निर्देश दिया गया था कि किसी भी आदमी या आध्यात्मिक शक्ति के आगे कभी भी झुकना नहीं चाहिए। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गया हूं, जहां मुझे खुद का उतना ही सम्मान करना चाहिए, जितना कि मैं दूसरों का सम्मान करता हूं। गुरुदेव के शब्दों ने मुझमें दोबारा आत्मविश्वास जगा दिया। एक भीगी बिल्ली फिर शेर बन गई!
जब मैं उस कमरे में गया जहां चीरा बैठा था, तो वह अपने धमकाने के पुराने तरीकों पर लौट आया। लेकिन इस बार उसकी आशा के विपरीत मैंने उसकी आक्रामकता का जवाब आक्रामकता से दिया। तब से वह मुझसे खौफ खाता है।
गुरुदेव सर्वव्यापी थे
और हमारे व्यक्तित्व के हर पहलू से परिचित थे,
वे हमारे अंदर के बदलाव की हर जरूरत को जानते थे।
हमारी कुछ आदतों और नजरियों को झाड़-बुहारकर, उन्होंने हमारे उद्भव के लिए जमीनी स्तर पर काम किया क्योंकि वे स्वयं विकसित थे और इस नाते से उन्हें पता था कि हम भी अंततः विकसित हो जाएंगे।
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