महागुरु
उनके हाथों का चमत्कार
उत्तर भारत के प्राचीन पहाड़ी शहर में,
लाखों लोगों की मदद की।
झुकी कमरों को सीधा किया,
रोगियों को स्वस्थ किया
लाइलाजों का इलाज किया।
कथोग हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित एक कम आबादी वाला शहर है। हिमाचल की पांच देवियाँ-ज्वालामुखी, नैना देवी, चिंतपूर्णी, चामुंडा देवी और ब्रजेश्वरी देवी के प्रसिद्ध मंदिर पास ही हैं।
1976 में, गुरुदेव और उनकी मृदा सर्वेक्षण टीम ने कथोग में शिविर स्थापित किया। इस दौरान उनका आवास स्कूल के सामने एक शिक्षक के निवास में था। उसी साल मई में, गुरुदेव ने वहां सेवा शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने अपने दिल्ली के कुछ शिष्यों को कथोग आने का निर्देश दिया। सभी को आश्चर्यचकित करते हुए सेवा के पहले कुछ दिनों में आसपास के क्षेत्रों से हजारों लोग गुरुदेव की मदद, चिकित्सा और आशीर्वाद पाने के लिए पहुंचे।
थापा नाम का एक तांत्रिक, जो शिक्षक निवास से थोड़ी दूर झोपड़ी में रहता था, सावधानी और अविश्वास से वहां हो रहे घटनाक्रमों को देखता था। उसे यकीन था कि यह आदमी कथोग के लोगों को अपनी हथेली पर एक ओम और त्रिशूल दिखाकर भ्रमित कर रहा है।
एक रात, थापा ने फैसला किया कि यह इस ‘भ्रम’ के खुलासे का समय है। उसने गुरुदेव में भगवान का भय पैदा करने के लिए एक शक्तिशाली आत्मा को भेजा, जो उसके नियंत्रण में थी। फिर थापा उस आत्मा के लौटने का इंतजार करने लगा। जैसे-जैसे वक्त सेकंडों से मिनटों और मिनटों से घंटों में बदलता गया, उसकी उत्सुकता बढ़ती गई। जब भोर हुई, तो वह स्थिति का पता लगाने शिक्षक निवास गया। जैसे ही उसने अधखुले दरवाजे से झांका, गुरुदेव ने उसे अंदर आने के लिए कहा। जब थापा सावधानीपूर्वक अंदर गया, तो गुरुदेव ने हंसते हुए कहा, “आपको ये मूर्खतापूर्ण परीक्षण करने की आवश्यकता नहीं है!” थापा को तत्काल समझ में आ गया कि गुरुदेव कोई भ्रम नहीं हैं। उसने संदेह को परे हटाकर भक्तिभाव से गुरुदेव से क्षमा मांग ली।
थापा ने गुरुदेव का उल्लेख सबसे पहले शिक्षक निवास के सामने वाले स्कूल के शिक्षक सुरेश कोहली से किया। सुरेश जी ने थापा की बातों को खारिज कर दिया, उन्हें लगा कि यह थापा नहीं, बल्कि यह वह शराब बोल रही है जो थापा नियमित रूप से पीता है। हालांकि, जिज्ञासावश वह भी, उस व्यक्ति से मिलने चल पड़ा, जिसके चमत्कारों ने कथोग जैसे छोटे शहर में हलचल मचा दी थी।
गुरुदेव ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और उन्हें चाय पेश की। बातचीत के दौरान, सुरेश जी ने गुरुदेव से पूछा कि क्या वे उन्हें ईश्वर (सर्वोच्च शक्ति) से मिला सकते हैं। गुरुदेव ने उन्हें रात में अपनी बगल में एक पानी का गिलास रखकर ध्यान करने को कहा। सुरेश जी याद करते हैं कि जब वे ध्यानस्थ थे, तो उन्हें अपने घर के मंदिर में गुरुदेव के दर्शन हुए। सात रातों तक लगातार उनके दर्शन हुए। हालांकि, आठवीं रात को, कुछ भी नहीं हुआ। जब सुरेश जी अगली सुबह कैंप में वापस आए, तो गुरुदेव ने उनका स्वागत करते हुए कहा, “हुणमैनु एस तेरह वेख्या मास्टरजी, ते समजना रब नुं पा लिता!” (मास्टरजी यदि आप मुझे फिर से इस तरह देखें, तो मान लें कि आपने ईश्वर को पा लिया!) सुरेश जी समझ गए थे कि गुरुदेव कोई साधारण संत नहीं हैं और उन्होंने झुककर उन्हें प्रणाम किया।
जैसे ही कथोग की भीड़ बढ़ी, गुरुदेव ने स्कूल परिसर में सेवा का काम प्रारंभ कर दिया, ताकि बड़ी संख्या में आने वाले लोगों को तकलीफ न हो। जब उन्हें ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ी, तो उन्होंने उसी स्कूल के कई शिक्षकों, जैसे सुरेश जी, शंभू जी और संतोष जी को वही पवित्र जल पिलाकर दीक्षित करके, उपचार और सेवा में लगा दिया, जो उन्होंने पिया था। अध्यात्मवाद का किसी भी प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान न रखने वाले पुरुष, अगले कुछ दिनों में आध्यात्मिक उपचारक बन गए।
गुरुदेव ने कथोग में कुछ असाधारण आध्यात्मिक चमत्कार दिखाए। वह बड़े जन-समूहों पर जल छिड़कते, जिससे बीमार को तुरन्त आराम मिल जाता। एक दिन, उन्होंने अपने हाथ एक आदमी की झुकी हुई पीठ पर रख दिए, और वह सीधा खड़ा हो गया।
कथोग में झुकी हुई रीढ़ से ग्रस्त एक आदमी का उपचार करते गुरुदेव
उनके शिष्य राजी शर्मा जी, कथोग को गुरुदेव की आध्यात्मिक यात्रा का ऐसा बिंदु मानते हैं जहां से वह ऊंची उड़ान भरने लगी। यह माना जाता है कि गुरुदेव ने इस छोटे शहर में एक लाख या उससे भी अधिक लोगों की मदद की और उसके बाद वे ‘ओम वाले बाबा’ के नाम से पहचाने जाने लगे।
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