प्रारम्भिक वर्ष

जन्म राजाओं के राजा का

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वो दिन था बरसात का जब जन्म हुआ एक संत का,
जब कड़कड़ाती ठंड के बाद आया मौसम बसंत का,
अपने नाम के अनुरूप चरितार्थ हुआ उनका पुरुषार्थ
और बन गए वे राजाओं के राजा।

Hariana, Punjab

गुरुदेव का जन्म 1938 में वसंत ऋतु के शुरुआती दिनों में एक भरे-पूरे साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ। परिवार में माता-पिता के अलावा बड़ी बहन और नाना-नानी थे। उनके पिता भगत राम जी, पेशे से रसायन व्यापारी, और मां राम प्यारी जी, एक दयालु और धर्मनिष्ठ महिला थीं।

गुरुदेव का जन्म, भारत के, पंजाब प्रांत के होशियारपुर जिले में स्थित एक छोटे से गाँव हरिआना में हुआ था। मुस्लिम राजपूतों और हिंदू ब्राह्मणों की यह छोटी-सी बस्ती सांप्रदायिक सद्भाव और एकजुटता का एक प्रतिमान थी।

गुरुदेव के जन्म से कुछ समय पहले, गुरुदेव का परिवार पंजाब की राजधानी अमृतसर में रहता था। चूंकि गुरुदेव की मां अपने पहले बच्चे बिमला के जन्म के बाद गर्भ धारण करने में असमर्थ थी, इसलिए गुरुदेव के दादाजी ने स्वर्ण मंदिर के एक संत से सम्पर्क किया, और ईश्वरीय अनुकंपा का अनुरोध किया। संत ने गुरुदेव की मां को पवित्र जल दिया और उनसे कहा कि उन्हें यह जल चालीस दिनों तक लगातार पीना है। इसके तुरंत बाद, गुरुदेव की मां गर्भवती हो गईं।

संत ने गुरुदेव के माता-पिता को अपने अजन्मे बच्चे का नाम संत प्रकाश रखने के लिए कहा, जिसका अर्थ है प्रबुद्ध संत। हालांकि, उनके जन्म के तुरंत बाद जब मूसलाधार बारिश होने लगी, तो उनकी दादी ने इसे एक अच्छे शगुन के रूप में देखा। अपने पोते को इन्द्र देवता का आशीर्वाद मानते हुए उन्होंने उसका नाम उनके नाम पर रखने पर जोर दिया, जिसमें इंद्र (हिंदू पौराणिक कथाओं में बारिश के देवता) का नाम शामिल हो। उनकी इच्छा का सम्मान करने के लिए, गुरुदेव के माता-पिता ने अपने नवजात बेटे का नाम राजिंदर रखा, जिसका अर्थ है राजाओं का राजा। दिलचस्प बात यह है कि, राजिंदर का अर्थ इंद्र का शासक भी होता है, और दशकों बाद, गुरुदेव ने बारिश और प्रकृति के कई अन्य तत्वों को नियंत्रित करने की क्षमता प्राप्त की।

हिंदू धर्म के सात महान संतों में से एक ऋषि भृगु, जिन्होंने लगभग 5,000 वर्ष पूर्व भृगु संहिता लिखी थी, उन्हें पता था कि इस पवित्र आत्मा को राजिंदर नाम दिया जाएगा, न कि संत प्रकाश। संहिता का गुरुदेव के बारे में कहना था- शिव का एक अंश हरिआना नामक एक गांव में जन्म लेगा और उसका नाम राजसे शुरू होगा। 

गुरुदेव के असाधारण भविष्य का पहला संकेत उनके जन्म लेने के कुछ सप्ताह बाद ही प्राप्त हो गया था। गुरुदेव के पिता के एक मुस्लिम बढ़ई मित्र ने बच्चे के जन्म पर परिवार को हाथ से बना लकड़ी का पालना उपहार में दिया था। वसंत की एक सुबह, गुरुदेव की मां ने अपने नवजात बेटे को अपने घर की छत पर पालने में लिटाया था। कुछ समय बाद जब वे वापस लौटीं, तो उन्हें वहां फन फैलाए एक काला नाग बैठा मिला। वे डर के मारे सुन्न पड़ गईं, और इसी बीच वो नाग रेंगता हुआ दीवार की एक दरार में छिप गया। नाग के दर्शन का अर्थ जानने के लिए गुरुदेव के माता-पिता ने एक पंडित (पुजारी) से सलाह ली, जिन्होंने उन्हें बताया कि यह उनके पुत्र के असाधारण भविष्य का बहुत शुभ संकेत है।

ऐसी ही भविष्यवाणी एक अन्य साधु (तपस्वी) ने भी की थी, जो कुछ वर्ष पश्चात गुरुदेव के घर आए थे। उन्होंने गुरुदेव की मां को बताया था कि 35 वर्ष की आयु में उनका पुत्र ‘शिव जैसा’, शक्तिशाली संत बनेगा।

शिव एक शक्ति है जो सर्वोच्च चेतना के अनुरूप एक मिश्रित गुणों का समूह है। एक व्यक्ति जो आध्यात्मिक रूप से इतना विकसित हो जाए कि वो मोक्ष पाने में समर्थ हो (जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त), उसे शिव के अवतार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है क्योंकि विकास के उस चरण में, उसके पास शिव के वे सभी गुण होते हैं, जो शंकर में बताए जाते हैं। ऐसा प्राणी या तो मानव या मायावी के रूप में हो सकता है। कई देवता उस स्तर तक विकसित हुए हैं, जहां शिव की शक्ति उनमें प्रकट हुई। मानव रूप में शिव की कुछ अभिव्यक्तियां – हनुमान, परशुराम, गुरुदेव, बूढ़े बाबा, गोरक्षनाथ आदि हैं।  

छोटे से बच्चे के भविष्य को लेकर की गई भविष्यवाणियों के बावजूद, गुरुदेव का प्रारंभिक जीवन सामान्य था। जब वे लगभग पांच साल के थे, तो उनका दाखिला हरिआना में डीएवी मॉडर्न स्कूल में करवा दिया गया, जहां उन्होंने हिंदी, उर्दू और फ़ारसी जैसे विषयों का अध्ययन किया। उनके सहपाठी उन्हें एक सामान्य लड़के के रूप में याद करते थे, जिसने पढ़ाई से ज्यादा शरारतों को प्राथमिकता दी और वो आसानी से दोस्त बना लेता था।

1948 में किसी समय, गुरुदेव अपने एक परिचित द्वारा दिया गया भोजन करने के बाद बीमार पड़ गए और बहुत कमजोर हो गए। वैद्यकीय सहायता के बावजूद, उन्हें कोई राहत नहीं मिली, और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। अपने पुत्र के इलाज के लिए परेशान गुरुदेव की मां ने उन्हें उपचार के लिए हरिआना से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में बाबा बालक नाथ के प्रसिद्ध मंदिर में ले जाने पर जोर दिया।

गुरुदेव के माता-पिता ने चलने-फिरने में अशक्त अपने पुत्र को मंदिर तक ले जाने के लिए कई किलोमीटर लंबी मुश्किल पहाड़ी यात्रा की। वहां पहुंचने पर, बाबा बालक नाथ के एक शिष्य ने गुरुदेव को पीने के लिए जल दिया और इसे पीने पर गुरुदेव ने छाछ और मसान (राख) जैसी उल्टी कर दी। माताजी (गुरुदेव की पत्नी) का मानना था कि ऐसा हो सकता है कि चमत्कारिक स्वास्थ्य प्राप्ति ने गुरुदेव पर एक अमिट छाप छोड़ी हो और इसी ने शायद आध्यात्मिक ज्ञान की उनकी खोज के लिए एक उत्प्रेरक का काम किया हो।

स्वस्थ और चलने-फिरने योग्य होने पर, गुरुदेव अपनी पुरानी शरारतों पर लौट आए। उनके स्कूल के साथी, सुभाष सभरवाल बताते हैं कि वे स्कूल से लौटते समय रास्ते में कतारबद्ध पेड़ों से फल तोड़ा करते थे। नाराज किसान की शिकायतों पर गुरुदेव के पिता जी उन्हें चेतावनी देते कि अगर उन्होंने अपने तौर-तरीके नहीं सुधारे, तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे, लेकिन गुरुदेव पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ा।

इसी तरह एक बार जब वे और सुभाष फल तोड़ने के लिए एक दरगाह में गए तो दरगाह के फकीर ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया। उसने लड़कों से कहा कि वे इस कृत्य के प्रायश्चित के लिए दरगाह पर सिर झुकाएं। उन्होंने फकीर के निर्देशों का पालन किया। इसके पश्चात, गुरुदेव फकीर के साथ समय बिताने के लिए नियमित रूप से दरगाह जाने लगे। इस समय, फर्क सिर्फ इतना था कि उत्सुकता सिर्फ फलों के लिए नहीं थी, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान के बीज के लिए थी।

गुरुदेव के समय से, बसंत पंचमी, उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यद्यपि, गुरुदेव इस तरह के समारोहों से नाराजगी व्यक्त करते थे। जब उनके शिष्य उन्हें उनके जन्मदिन पर फूल और उपहार भेंट करते, तो वे उन्हें इस तरह धूमधाम से जन्मदिन मनाने के लिए मना करते। वे हमेशा कहते, “न तो मैं पैदा हुआ था और न ही मैं मरूंगा।” एक महागुरु के रूप में, उन्होंने लोगों को लौकिक (अस्थायी) प्रकृति के बारे में जागरूक करने में बहुत समय दिया। उन्होंने लोगों को स्थानों या चीजों से जुड़ने की बजाय आत्मा से परिचय करने की सलाह दी, जो शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। एक निवेश रणनीतिज्ञ के रूप में, उनका मानना था कि ईश्वरीय जीवन मानव जीवन की तुलना में दस गुना अधिक लंबा होता है। इसलिए, लोगों को अल्पकालिक निवेश के बजाय दीर्घकालिक पर ध्यान देना चाहिए।