रहस्यमय व्यक्ति

बुड्डे बाबा

Quote
शिक्षक का भी एक शिक्षक था। सच्चा, ज्ञानी और बुजुर्ग।
नाम था उसका बुड्डे बाबा,
बहुत तलाशा हमने उसको,
पर जान न सके हम उसकी माया!

रहस्यमयी बुड्डे बाबा (पुराने संत), जिन्हें गुरुदेव ने अपने जीवन और हमारे जीवन का एक सर्वव्यापी हिस्सा बताया है, के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। गुरुदेव हमेशा कहते थे कि वे कर्ता नहीं हैं और सेवा का श्रेय उनके आध्यात्मिक गुरु को जाता है। कभी-कभी, जब हम गहन प्रश्न पूछते हैं, तो वह कहते कि उत्तर देने से पहले वह बुड्डे बाबा से उसकी पुष्टि करेंगे।

गुरुदेव के एक शिष्य याद करते हैं कि महाशिवरात्रि या गुरु पूर्णिमा जैसे पर्वों पर, दर्शन करने वाले भक्त दो मालाएं चढ़ाते थे-एक स्थान पर और दूसरी गुरुदेव को। एक महाशिवरात्रि पर, शिष्यों को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ, कि गुरुदेव ने कुछ लोगों को उन्हें माला पहनाने की अनुमति दी, जबकि कुछ को नहीं दी। चूंकि गुरुदेव ने कभी भेदभाव नहीं किया था, इसलिए शिष्यों ने गुरुदेव से उनके ऐसा करने का कारण पूछा। गुरुदेव ने जवाब दिया, “मैं नहीं चाहता कि मेरे गले में अपने गुरु की तुलना में अधिक मालाएं हों।”

ऐसा माना जाता है कि 1970 में हर की पौड़ी में अपनी सिद्धियां त्यागने से पूर्व वे बुड्डे बाबा से मिले थे, जिन्हें उन्होंने अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक और गुरु के रूप में स्वीकारा।

गुरुदेव और उनकी टीम ने मध्य प्रदेश में एक दूरदराज के गांव में शिविर लगाया था। एक दिन, जब गुरुदेव अपने मंत्रों का जाप करते हुए शिविर के पास जंगल में घूम रहे थे, तो एक सुनसान मंदिर में उनकी मुलाकात एक संत से हुई। चूँकि गुरुदेव तम्बाकू खा रहे थे, ऋषि ने उनसे तम्बाकू माँगी। बदले में, उन्होंने गुरुदेव को बताया कि वे जिस मंत्र का जाप कर रहे हैं, वह अधूरा है। उन्होंने आठ शब्दों के परिशिष्ट का सुझाव दिया, और घोषित किया कि इससे गुरुदेव की आध्यात्मिक यात्रा की दिशा बदल जाएगी। उन्होंने कहा कि गुरुदेव को अगली सुबह अपने तकिए के नीचे एक स्टील का कड़ा मिलेगा।

Buddhe Baba - the mysterious mentor

मध्य प्रदेश के एक वीरान मंदिर में बुड्डे बाबा से मिले गुरुदेव।

गुरुदेव ने उसी रात से विस्तारित मंत्र का जाप शुरू कर दिया। अगली सुबह जब उन्होंने अपने तकिए के नीचे स्टील का कड़ा देखा, जिस पर संस्कृत के अक्षर अंकित थे, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। ऋषि ने अपना वचन निभाया था। पिछले दिन मिले संत से दोबारा मिलने को उत्सुक, गुरुदेव पुनः मंदिर गए, लेकिन ऋषि कहीं नहीं मिले। जब उन्होंने वहाँ बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति से ऋषि के बारे में जानकारी ली, तो उन्हें बताया गया कि मंदिर में बहुत लंबे समय से कोई नहीं आया है।

इसके बाद गुरुदेव शिविर में लौट आए और फिर से मंत्र का जाप करने लगे। इस बार,

उन्हें एक वाणी सुनाई दी कि वह जिसे ढूंढ रहे हैं वह पहले से ही उनके भीतर है, और उनके लिए निस्वार्थ भाव से लोगों का उपचार प्रारंभ करने का समय आ गया है। जब गुरुदेव ने कहा कि वह नहीं जानते कि लोगों को कैसे स्वस्थ करना है, तो उस वाणी ने उन्हें बताया कि वह जिसका भी स्पर्श करेंगे, वह स्वस्थ हो जाएगा। उस आवाज ने गुरुदेव को यह भी आश्वासन दिया कि जब भी उन्हें मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी, ऋषि उन्हें रास्ता दिखा देंगे।

इस घटना का उल्लेख यहां गुरुदेव की एक रिश्ते की शुरुआत या शायद पुनर्जीवित होने के रूप में किया गया है, जिसे गुरुदेव अत्यन्त पवित्र मानते थे। गुरुदेव ने कभी बुड्डे बाबा की पहचान का खुलासा नहीं किया, इसे उन्होंने लोगों के अनुमान पर छोड़ दिया।

गुरुदेव के रहस्यमय आध्यात्मिक मार्गदर्शक से मिलने का दावा करने वाले कुछ लोगों में एक गुरुदेव की छोटी बहन भी थीं। वह गुड़गांव में गुरुदेव के घर में थी, जब उन्होंने अपने भाई को अपने शिष्यों से यह कहते हुए सुना कि निकट भविष्य में जब वे यहां नहीं होंगे, तभी उन्हें उनकी शिक्षाओं का अर्थ समझ में आएगा। उस एक वाक्य को एक पूर्व संकेत मानते हुए, गुरुदेव की बहन भावुक हो गईं। उनके बिना जीवन की कल्पना करके, वह अपने भाई के खाली बेडरूम की फर्श पर लेटकर रोने लगीं, तभी उन्होंने कमरे की एक दीवार पर लाल-प्रकाश को आते देखा। फिर उन्होंने उस प्रकाश से सुसज्जित लंबे भूरे बालों और हल्की दाढ़ी वाले बुजुर्ग ऋषि का एक उज्ज्वल चेहरा, जिसने श्वेत वस्त्र धारण किए हुए थे।

गुरुदेव की बहन चौंक कर बैठ गईं।

बुजुर्ग ऋषि ने उनसे पूछा कि वह परेशान क्यों है। सुबकते हुए उन्होंने अपने भाई के शब्दों को दोहराया जो उन्होंने अपने शिष्यों से कहे थे। प्रकाश में लिपटे व्यक्ति ने उसे बताया कि गुरुदेव को एक अधिकारिक शिविर के लिए जाना है और कुछ महीनों में वापस आ जाएंगे। यह सुनकर, गुरुदेव की बहन को राहत महसूस हुई। आश्वस्त करने के तुरंत बाद, प्रकाश से दैदीप्यमान व्यक्ति गायब हो गया। जब गुरुदेव की बहन ने गुरुदेव को अपना अनुभव बताया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें बुड्डे बाबा के दर्शन हुए हैं।

माताजी ने भी ऐसी ही एक दिलचस्प मुलाकात की चर्चा की, जिसमें उनके पति के रहस्यमय गुरु शामिल थे। एक रात उनकी नींद खुल गई तो उन्होंने देखा कि गुरुदेव बिस्तर पर बैठे किसी से बात कर रहे हैं। वह उन्हें बाबा कहकर संबोधित कर रहे थे। किसी कारण से, उन्होंने बातचीत अचानक समाप्त कर दी। सुबह, गुरुदेव ने खुलासा किया कि उन्हें बुड्डा बाबा के साथ अपनी बातचीत समाप्त करनी पड़ी जब बुड्डे बाबा ने उन्हें बताया कि माताजी उन्हें देख रही हैं।

गुरुदेव के परिवार के एक अन्य सदस्य जिन्होंने बुड्डे बाबा को देखा, वो थीं उनकी बेटी, रेणु जी।

(गुरुदेव की बेटी रेणु जी ने भी बुड्डे बाबा को देखा था।) एक दिन, बुखार होने पर, वह स्कूल नहीं गई थीं। घर में कोई नहीं था और वे बिस्तर पर चुपचाप लेटी हुईं थीं, तभी उन्होंने सफेद कपड़े पहने भूरे बालों वाले एक आदमी को अपने कमरे के सामने बने गोदाम से निकलकर नजरों से ओझल होते देखा। रेणु जी ने डर के मारे अपने चेहरे को कंबल से ढक लिया ताकि उन पर उस बुजुर्ग अजनबी का ध्यान न जाए। माताजी जब कुछ घंटे बाद काम से लौटीं, तभी रेणु जी ने अपने चेहरे से कंबल हटाया। उन्होंने जो देखा था, उसे मांको बताया, तो माताजी ने उन्हें बताया कि उन्होंने जिस आदमी को देखा था वह बुड्डे बाबा हैं।

गुरुदेव के कई शिष्यों ने स्वप्न में बूढ़े बाबा को देखने का दावा किया है। पूरन जी ने एक सपने में बुड्डे बाबा को प्रणाम किया था, जिसमें उन्होंने बूढ़े बाबा को जरूरतमंदों को खाद्यान्न वितरित करते हुए देखा। एक अन्य शिष्या, रूपल ने स्वप्नावस्था में बुड्डे बाबा की तस्वीर को एक स्थान की दीवार पर लगे हुए देखा था। दिलचस्प बात यह है कि भले ही पूरन जी और रूपल की मुलाकात कभी नहीं हुई, लेकिन दोनों ने ही इस मायावी आकृति के भौतिक स्वरूप का एक-सा विवरण साझा किया।

कुछ का मानना ​​है कि बुड्डे बाबा शिव का साकार रूप हैं, जबकि अन्य लोगों का मानना ​​है कि वे बनारस के सीताराम जी हैं, जो दसुआ के सीताराम जी के गुरु और गुरुदेव के प्रारंभिक आध्यात्मिक गुरु थे। भ्रम इस तथ्य से उपजा है कि बनारस के सीताराम जी एक महान संत थे, जो यीशु और गुरु नानक की तरह सह शरीर गए थे। इस संसार को सह शरीर त्यागना, शरीर की परमाणु संरचना के पुनर्विन्यास के माध्यम से विलीन हो जाने क्षमता है, और ऐसा करने में बहुत कम अध्यात्मवादी सक्षम हैं। बनारस के सीताराम जी अध्यात्मिक रूप से इतने विकसित हो गए थे कि वह निश्चित रूप से शिव कहलाने के योग्य थे। इसलिए, बुड्डे बाबा के शिव होने पर गुरुदेव के संकेत केवल भ्रम को बढ़ाते हैं। चूंकि गुरुदेव ने कभी बुड्डे बाबा की पहचान का खुलासा नहीं किया, इसलिए हम सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन कभी भी निश्चित मत नहीं हो सकते।

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