महागुरु

महागुरु का जन्म

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जब उन्होंने सबकुछ त्याग दिया,
तो मानो सबकुछ पा लिया
यही है आध्यात्मिक विरोधाभास मेरे दोस्त,
उन्हें पता था, संपत्ति से नहीं कहलाते धनवान
अमीर वही जो मुक्ति का मार्ग दिखाकर करे सबका कल्याण

ऐसा माना जाता है कि 1970 के आस-पास बुड्डे बाबा ने गुरुदेव को उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा के किनारे हर की पौड़ी पर अपनी सभी सिद्धियों को त्यागने का निर्देश दिया था। ये वे सिद्धियां थीं, जिन्हें उन्होंने दसुआ के सीताराम जी के मार्गदर्शन में हासिल की थीं।

अपनी आध्यात्मिक उपलब्धियों से मुक्त होने के लिए जब गुरुदेव ने अपने हाथ गंगा के जल में डाले, तो उनमें से एक सिद्धि ने उनसे उसे न त्यागने का अनुरोध करते हुए कहा कि इसके बदले में वह उससे इच्छित वरदान मांग सकते हैं। परन्तु इस प्रलोभन से अप्रभावित गुरुदेव ने दृढ़तापूर्वक बुड्डे बाबा के आदेश का पालन किया, और वर्षों में हासिल की गई सभी शक्तियों को गंगा को अर्पित करके तट पर आ गए। शक्तियों का त्याग करते ही उनकी महागुरु के रूप में यात्रा प्रारम्भ हो गई।

Advent of the Mahaguru

हर की पौड़ी में सिद्धियों का त्याग करते गुरुदेव

1973 में गुरुदेव और उनकी टीम ने मध्य प्रदेश के छोटे से शहर कुरवाई में शिविर लगाया। यात्रा में गुरुदेव के साथ गए नागपाल जी बताते हैं कि धन्ना, जिसकी जमीन पर टीम ने अपना कैंप लगाया था, उसे तेज बुखार था। उसने चार दिन बाद गुरुदेव से अपनी बीमारी का उल्लेख किया। गुरुदेव ने उस पर जल छिड़का, उसके माथे पर हाथ रखा और एक ही मिनट में धन्ना बेहतर महसूस करने लगा।

अगले दिन, एक और व्यक्ति धन्ना के कहने पर गुरुदेव के पास आया। उसके पेट में बहुत दर्द था। गुरुदेव ने उस व्यक्ति के पेट को अपने हाथों से सहलाया और दर्द कम हो गया। तत्पश्चात, बहुत-से लोग गुरुदेव के पास अपनी समस्याओं से मुक्ति की प्रार्थना लेकर आने लगे, जिनसे वे पीड़ित थे।

कुछ दिनों बाद, टीम कुरवाई से 70 किलोमीटर दूर अशोक नगर चली गई। गुरुदेव के चमत्कारी स्पर्श की बात फैलते ही, लोगों से भरी बैलगाड़ियां शिविर में आने लगीं। शारीरिक और मानसिक समस्याओं से पीड़ित लोग आंशिक या पूर्ण रूप से ठीक होकर ही शिविर से निकलते थे।

कई वर्षों बाद कुछ शिष्यों के साथ बातचीत के दौरान, गुरुदेव ने बताया कि कुरवाई में सार्वजनिक उपचार बुड्डे बाबा के आदेश पर किया था, बुड्डे बाबा ने उन्हें निस्वार्थ सेवा करने का निर्देश दिया था। शुरू में गुरुदेव उन कुछ लोगों की मदद और चिकित्सा करने में हिचक रहे थे, जिनके बारे में वे जानते थे कि उन्होंने अतीत में कई गलतियां की हैं। लेकिन बुड्डे बाबा ने उनसे बिना भेदभाव के निस्वार्थ सेवा करने के लिए कहा, और उसके बाद गुरुदेव ने वैसा ही किया।

दिलचस्प बात यह है कि जब उन्होंने कुरवाई में पहला सार्वजनिक इलाज किया उस समय गुरुदेव की उम्र 35 वर्ष थी। ‘शिव जैसे किसी व्यक्ति’ के रूप में उनके उद्भव की भविष्यवाणी सत्य हुई।

ऐसा माना जाता है कि इस घटना से पहले, ‘ओम’ और ‘ज्योत’ (एक ज्योति) के प्रतीक, जो उन्हें प्राप्त आध्यात्मिक शक्तियों के प्रतीक हैं, पहले ही उनकी हथेलियों पर दिखाई देने लगे थे। हालांकि, इस अवधि के दौरान, ‘ओम’ का प्रतीक उनकी छाती पर दिखाई दिया, जबकि एक ‘ओम’ उनकी पीठ पर उभरा हुआ था।

समय के साथ, गुरुदेव की हथेलियों पर प्रतीकों के रूप में कई अन्य आध्यात्मिक शक्तियां प्रकट हुईं। ‘ओम’ और ‘ज्योत’ के अलावा, उनके पास त्रिशूल, छड़ी के साथ डमरू, एक शिवलिंग और गिलेरी (शक्ति का प्रतीक) जिस पर एक सांप लिपटा हुआ था, गणपति और नंदी (शिव का बैल) थे। उनकी अंतिम प्राप्ति एक रजत ओम थी, जिसके चारों ओर एक चक्र था। कुछ अन्य प्रतीक जिसमें सुदर्शन चक्र (भगवान विष्णु का शस्त्र), 786 (सर्वोच्च चेतना का प्रतिनिधित्व करने वाला एक इस्लामी प्रतीक) और इक ओंकार भी प्रकट हुए।

हाथों, छाती और पीठ पर कई शक्तियों के प्रकट होने से गुरुदेव एक देवस्थान बन गए।

उनकी पूजा करना मानो
एक चलते-फिरते शिवालय की पूजा।

गुरुदेव की पूजा करके, अनगिनत लोगों ने उनके भीतर समाहित आध्यात्मिक ऊर्जाओं के प्रति सम्मान व्यक्त किया। कुछ मामलों में, गुरुदेव ने इन ऊर्जाओं और उनके साथ आने वाले प्रतीकों को अपने शिष्यों और भक्तों को दिए। महागुरु के जागृत होने के बाद, इन शक्तियों के द्वारा गुरुदेव ने लाखों लोगों की सेवा की।