अलौकिक

मुझे उम्मीद है कि आपने इसे पढ़ने से पूर्व जीवनी के अन्य खंडों को ध्यान से पढ़ लिया होगा। यदि आपने पढ़ा है, तो आपको ज्ञात होगा कि इस आध्यात्मिक सुपरमैन ने खुद को एक सामान्य व्यक्ति की नियति के लिए अभिकल्पित किया था। शायद आप में से कई लोग इस सवाल का जवाब पाने को उत्सुक होंगे कि ‘महागुरु ने एक सामान्य जीवन जीना क्यों पसंद किया, जब उनमें कुछ भी साधारण नहीं था?’

जवाब शायद भृगु संहिता में छिपा हुआ है। दिव्यदृष्टा ऋषि भृगु ने गुरुदेव को दिव्यात्मा और शिव-स्वरूप के रूप में वर्णित किया है। वह आगे कहते हैं, “ध्यानास्था में वह शिवस्वरूप और वाणी में विष्णु के समान हैं। सेवा और संरक्षण में, वह ब्रह्मा की तरह हैं और लोगों को दुःखों से मुक्ति दिलाने में, वह जगदंबा की तरह हैं। उनकी आभा सूर्य की भांति बाहर से गर्म, अंदर से नरम और अन्तर्ज्ञान से भरी हुई है। लोग इस मानव रूप के पीछे की वास्तविकता को नहीं जान पाएंगे।”

विभिन्न स्वरूप

1974 में महाशिवरात्रि सप्ताह के दौरान, महागुरु ने अनिच्छा से शंभूजी को स्वयं के पंचमुखी स्वरूप के दर्शन दिए। यह घटना तब की है, जब शंभू जी ने एक इंसान के पांच सिर होने की संभावना के बारे में जोर देकर पूछा। यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि उन्होंने स्थान में एक पेंटिंग देखी थी, जिसे महान गुरु ने शिव का ‘महामृत्युंजय’ स्वरूप बताया था, यह पंचमुखी शंकर का चित्र था।

पूछताछ के प्रारंभिक चरण में, गुरुदेव ने कहा कि किसी व्यक्ति की ऊर्जा या शक्तियों के आधार पर उसके पांच सिर हो सकते हैं। उत्तर से असंतुष्ट, शंभू जी ने अपने गुरु से महाभारत के एक संदर्भ, जब कृष्ण ने अर्जुन के आग्रह पर अपना विराट रूप (दिव्य रूप) दिखाया था, का हवाला देते हुए उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाने के लिए कहा। इस पर महागुरु ने जवाब दिया, “न तो मैं कृष्ण हूं, न तुम अर्जुन हो, इसलिए तुम्हें अपना स्वरूप दिखाने का सवाल ही नहीं उठता।”

शंभू जी इतनी जल्दी कहां हार मानने वाले थे। वे दृढ़ थे, जबकि दो अन्य भक्त रामनाथ जी और राज कपूर जी, उनकी हां में हां मिला रहे थे। गुरुदेव ने शंभू जी को समझाने की बहुत कोशिश की, उन्होंने उनसे कहा, “मैंने तुम्हारा जीवन पांच वर्ष बढ़ाया है। लेकिन अगर आप मेरा स्वरूप देखते हैं, तो आप उन वर्षों को खो देंगे। आग्रही शंभू जी, गुरुदेव के पांच मुख वाले स्वरूप के दर्शन के लिए अपने जीवन-विस्तार को त्यागने के लिए तैयार थे। जब गुरुदेव के साथ उनकी बातचीत चल रही थी, शंभू जी अचानक बेहोश हो गए। जब गुरुदेव ने उन पर जल छिड़का तो उन्हें होश आया, तब गुरुदेव ने कहा, “मैंने तुम्हें अपने स्वरूप की छोटी-सी झलक दिखाई पर आप इसे संभाल नहीं पाए। यदि आप मेरा वास्तविक स्वरूप देखना चाहते हैं, तो आपको उस रूप को सहन करने की आंतरिक क्षमता विकसित करनी होगी।”

बाद में शंभू जी ने कमरे में मौजूद अन्य दो लोगों से कहा कि बेहोश होने से ठीक पहले उन्होंने अपने गुरु को पांच सिर के साथ देखा था और उनका शरीर चमकदार रुपहली रोशनी में नहाया हुआ था। गुरुदेव के पंचमुखी स्वरूप के दर्शन इन तीनों में सिर्फ उन्हें हुए थे। हमसे इस घटना का उल्लेख करने वाले राज कपूर जी ने बताया कि “महागुरु बहुत उदार थे। उन्होंने न केवल शंभू जी को अपना रूप दिखाया बल्कि आशीर्वाद स्वरूप दिए गए उन पांच अतिरिक्त वर्षों को भी उनसे वापस नहीं लिया।”

Gurudev shows Shambhu ji his five headed form

शंभू जी को अपने पांच सिरों वाले रूप के दर्शन कराते गुरुदेव

गुरुदेव के रूप बदलने के अनेक उदाहरण हैं, और उनके कुछ शिष्यों को उन रूपों को देखने का सौभाग्य भी प्राप्त है। जब क्वात्रा जी ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया तो पर महान गुरु पवित्र ज्योति में बदल गए। राजपाल जी ने महागुरु को उनके दोगुने आकार के सिर के साथ देखा। परवाणू के गुप्ता जी ने महागुरु के बौने स्वरूप के दर्शन किए। शंभू जी के बेटे, पप्पू जी उस समय चकित रह गए, जब अपनी सफाचट दाढ़ी वाले गुरु के साथ घंटों बिताने के कुछ मिनट के भीतर ही उन्होंने लम्बी दाढ़ी वाले महागुरु के दर्शन किए।

जब उद्धव जी ने खिड़की से अपने कमरे में आए पीले रंग की आंखों वाले दो काले त्रिभुजों पर अपने नानचाकू का प्रयोग करने की कोशिश की, तो उनका हाथ जम गया और वह बेहोश हो गए। अगली सुबह जब वह सोकर उठे, तो उन्होंने इस घटना को महागुरु को बताने का निर्णय लिया। उनके गुरु ने कहा, “पहले आप मुझे मिलने के लिए आमंत्रित करते हैं और जब आता हूं, तो आप मुझ पर आक्रमण करने की कोशिश करते हैं”। महागुरु ने दबंग उद्धव को बताया कि उन्होंने उस त्रिकोणी शक्ति से समझौता क़िया कि वे उद्धव की जान बक्श दें क्योंकि त्रिकोणी शक्ति को अपने ऊपर इस तरह के आक्रमण की कोशिश बिल्कुल भी नहीं भाई थी।

वास्तव में, महागुरु जिस सर्वशक्तिमान ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते थे उसे एक रूप या पहचान देना आसान नहीं है। उन्होंने अपने स्वरूप की पूरी तस्वीर कभी नहीं दिखाई, बस उसकी थोड़ी-सी झलक दिखाई।

बहुत कोशिश के बाद भी हम उन्हें एक आध्यात्मिक मानव के रूप में देखते थे, ना कि एक उन्नत आध्यात्मिक आत्मा, जिसने एक मानव का रूप लिया। यह उतना ही सच है जितना की उनकी गूड़ बातों का मतलब समझना। जब मेरे शब्द उन्हें व्यक्त करने में कम पड़ जाते हैं तो मुझे शायर दाग़ देहलवी का शेर याद आता है…

Quote

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

शक्ति के प्रतीक चिह्न

गुरुदेव की कई शक्तियां उनके शरीर पर प्रतीकों के रूप में प्रकट हुईं, जो यह दर्शाता है कि उनका आभामंडल इन प्रगट हुए प्रतीकों की शक्तियों से घिरा था। उनकी उपस्थिति का अर्थ यह भी है कि वह उन शक्तियों का उपयोग करने के लिए योग्य थे।

उनके हाथों में पूरा शिव-परिवार था। ॐ, नन्दी, गिलेरी और सर्प लिपटा हुए शिवलिंग जैसे प्रतीक उनके दाएं हाथ में थे। उनके बाएं हाथ पर ॐ का प्रतीक था, जिसके आर-पार एक त्रिशूल गुजरता प्रतीत होता था। इसके अलावा त्रिशूल, गणपति और ज्योत के प्रतीक थे। इन प्रतीकों को कई लोगों ने देखा। कुछ शिष्यों ने उनके दाहिने हाथ पर तीन पिंडियों को देखा और उनका मानना था कि उन्होंने उनको माता वैष्णो देवी के दरबार से प्राप्त किया था। संतलाल जी ने महागुरु के हर नाखून पर त्रिशूल होने की बात बताई, जबकि माताजी ने उनकी एक हथेली पर सुदर्शन चक्र देखा।

गुरुदेव की हथेलियों पर बने प्रतीक चिह्न

ॐ दिव्यता का प्रमाणित मानक है। यह इंगित करता है कि आप चेतना के एक निश्चित स्तर पर पहुंच गए हैं और आप दिव्य के स्तर पर हैं। यह सभी चेतन स्वरूपों के साथ संपर्क के एक उन्नत स्तर का प्रतीक है। गुरुदेव के हाथ, छाती, पीठ और माथे पर ॐ था। कुछ लोगों ने उनके हाथ पर अत्यन्त प्रकाशवान ॐ को देखा जो ऐसा प्रतीत होता था वह चांदी से जड़ित हो।

त्रिशूल स्वयं और दूसरों की सुरक्षा का एक शस्त्र है। यह शक्ति या रचनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। त्रिशूल की प्राप्ति से पहले, गुरुदेव और उनके शिष्य, दूसरों का उपचार करते हुए नकारात्मकता को अपने भीतर समाविष्ट कर लेते थे। जब उन्होंने त्रिशूल प्राप्त किया, तो उन्होंने इसे अन्य शिष्यों को भी दिया, उन्होंने उन्हें बताया, “आपको बीमारी को अपने भीतर समाविष्ट करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अब आपके पास इससे निपटने के लिए शक्तियां हैं”।

गिलेरी के साथ शिवलिंग पुरुष और स्त्री ऊर्जा सिद्धांत, आपकी स्थिति को परम चेतना के प्रतिनिधि के रूप में दर्शाता है। शिवलिंग पर लिपटा हुआ सर्प, सहायता, सुरक्षा और बचाव करने के लिए शक्ति का उपयोग करने की क्षमता का पूरक है। यह निचले लोकों या तलों पर सत्ता का प्रतिनिधित्व करता है।

गणपति की प्रतीक तीसरे सिद्धांत पर नियंत्रण रखता है, जो तब बनता है जब – शरीर का बायां हिस्सा या शक्ति, दाहिने हिस्से या शिव के साथ केंद्र में मिलते हैं। इस प्रकार बनाया गया सूक्ष्म बल गणपति है; शिव-शक्ति के मिलन का सामूहिक और सहयोगी प्रतिफल।

दो सींगों के रूप में नंदी के प्रतीक का चित्रण किया जाता है और यह बैल की ऊर्जा का प्रतीक है। बैल (सांड) एक शक्तिशाली जानवर है, शेर भी शायद ही कभी उस पर हावी हो पाता है। नंदी असाधारण आध्यात्मिक शक्ति की अभिव्यक्ति हैं और निष्ठा, ईमानदारी से सेवा और सहायता के लिए सदैव रहने वाले के रूप में जाने जाते हैं। कुल मिलाकर, यह शिव को समर्पित मन की विशेषता है।

ज्योत दृश्य और अदृश्य अग्नि का संयोजन है जो भीषण से लेकर सौम्य तक हो सकती है। सौम्य अग्नि अदृश्य प्रकाश की सूचक है, यह प्रकाश के दृश्यमान स्पेक्ट्रम का हिस्सा नहीं है। इसलिए, ज्योत का प्रतीक उस प्रकाश की प्राप्ति का सूचक है जिसमें भीषण और सौम्य प्रकाश शामिल हैं। (जीवात्मा भी एक प्रकाश है जिसे नग्न आंखें नहीं देख सकती हैं, हालांकि कभी-कभी इसके विकिरण को देखा या महसूस किया जा सकता है)।

बाएं हाथ पर ज्योत, पारदर्शी लेकिन स्थायी त्वचा के छाले के रूप में दिखाई देती थी। ऐसा माना जाता है कि गुरुदेव ने ज्वालाजी से यह शक्ति प्राप्त की, जो कि स्फूर्त अग्नि का मंदिर है और जिसका स्रोत ज्ञात नहीं है। महागुरु के शिष्य, शर्मा जी ने खार के स्थान में सेवा के दौरान ज्योत प्राप्त की थी। एक दृश्य ज्योति (ज्योत) ने स्थान की एक खिड़की से प्रवेश किया, जहां शर्मा जी बैठे थे वहां गई, और सबके सामने उनके बाएं हाथ में स्वयं को स्थिर कर दिया। कई अन्य लोगों ने भी ज्योत प्राप्त की, लेकिन इतने गुप्त रूप से कि जब तक गुरु ने उन्हें इसके बारे में बताया नहीं, वे जान ही नहीं पाए।

गुरुदेव कई तरह से शक्ति प्रतीकों को स्थानांतरित करने में सक्षम थे, जिसमें लोगों के सिर पर हाथ रखना या उन्हें अपना पिया हुआ पानी पीने के लिए देना शामिल था। महागुरु ने शक्ति हस्तांतरण की किसी भी मानक प्रक्रिया का उल्लेख नहीं किया। वह प्राप्तकर्ता से हजारों मील दूर होने पर भी शक्तियों का हस्तांतरण कर सकते थे। उन्होंने कई बार कई तरीकों से शक्तियों का हस्तांतरण किया। ज्यादातर मौकों पर, वह बस ऐसा करने का इच्छा करते थे।

तात्विक तालमेल (सहक्रियाएं)

तत्वों के साथ गुरुदेव की संबद्धता (कनेक्टिविटी) के कारण वह लोगों को सहजता से प्रभावित कर लेते थे।

मुझे याद है कि अपने खांडसा फार्म में, उन्होंने मीठे पानी के स्रोत को सटीक रूप से चिह्नित कर दिया था। शुरू में हमने फार्म की पश्चिम दिशा में बोरिंग की, लेकिन उससे एकदम खारा पानी निकला। उन्होंने फार्म के बाईं ओर के स्थान को चिह्नित करते हुए हमें उस स्थान पर बोरिंग करने के लिए कहा। नई जगह से मीठा और पीने योग्य पानी निकला। रेणुका में उन्होंने पानी बहने के लिए एक नाली खोदकर शुष्क भूमि को हरे-भरे स्थान में बदल दिया था।

न केवल वह पानी का अनुमान लगाने वाले एक विशेषज्ञ थे, बल्कि वह पानी के लिए दिव्य भी थे। मैंने मुंबई के जुहू बीच पर जो देखा, उसने मेरे इस विचार को मजबूती प्रदान की। जब हममें से कुछ लोग और गुरुदेव क्षितिज को एकटक निहार रहे थे, मैंने देखा कि कम से कम तीस फुट दूर से एक लहर ने आगे बढ़कर गुरुदेव के चरणों को स्पर्श किया। ऐसा करने के बाद, वह उथले पानी में विलीन हो गई। हम में से काफी लोग महागुरु के साथ खड़े थे, लेकिन लहर ने सिर्फ उन्हें चुना। एक अन्य अवसर पर, महाबलीपुरम के समुद्र तट पर खड़े गिरि जी ने महागुरु के चरणों की ओर बंगाल की खाड़ी से आती हुई ऐसी ही एक लहर देखी थी।

उनका बारिश के साथ एक अनोखा संबंध था। जिस दिन महागुरु का जन्म हुआ, उस दिन बारिश हुई थी। वह इसे अपनी इच्छानुसार बरसा और रोक सकते थे। बारिश पर महागुरु के नियंत्रण के अनेक प्रसंग हैं। एक गुरु पूर्णिमा पर, एक शिष्य ने उन्हें सूचित किया कि जुलाई की चिलचिलाती गर्मी के कारण उनसे मिलने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे लोग थक गए हैं। यह सुनकर, गुरुदेव ने बारिश की इच्छा व्यक्त की, और लगभग तुरंत ही बारिश होने लगी, लेकिन जहां तक कतारें थीं, बस वहीं तक बारिश हुई।

गुरुदेव ने एक बार मुझे बताया था कि महागायत्री मंत्र की सिद्धि अग्नि को नियंत्रित करने की क्षमता देती है। महागुरु जब तक वह जीवित थे, महाशिवरात्रि की अधिकांश रातों में उबलती हुई नींबू की चाय को अभिमंत्रित करने के लिए कुछ क्षणों के लिए उसमें अपने हाथ डुबोते थे। इस प्रक्रिया के कारण उनके हाथ में कभी कोई जलन, घाव या फफोला नहीं पड़ा।

न केवल महागुरु ने प्रकृति पर नियंत्रण किया, बल्कि उनके शिष्यों ने भी ऐसा ही किया। ज्वालामुखी के युवा पप्पू जी पर जब ईर्ष्यालु तांत्रिकों ने आग के गोले फेंके तो उन गोलों को दिशाहीन करके, उन्हें मौत से बचाया गया था। उन्होंने अपने मृत पिता शंभू जी को हमलावर आग के गोलों को रोकते हुए देखा था।

अंतरिक्ष, अन्य लोकों की उनकी कई गुप्त यात्राओं का संरक्षक है। महागुरु की एक साथ दो स्थानों में उपस्थित रहने की क्षमता की कम से कम दो घटनाएं दर्ज की गई हैं। एक बार जिस समय वह सुनील जी के साथ लंदन में उनकी दुकान पर बैठे थे, लगभग उसी समय जब वह बख्शी जी के साथ गुड़गांव के स्थान पर बैठक कर रहे थे। दूसरी बार, वह अपने कार्यालय और खेत दोनों जगह एक ही समय लोगों से बातचीत कर रहे थे! नागपुर में, महागुरु को एक बंद कमरे में फोन पर बात करते देखा गया, भले ही कुछ मिनट पहले उन्हें अपने शिष्यों के साथ कहीं और बैठे देखा गया था। दीवारों के पार गुजर जाने की उनकी क्षमता उनके सूक्ष्म शरीर से भी आगे थी।

वह एक ही समय में शारीरिक रूप से उपस्थित और अनुपस्थित हो सकते थे। अगर यह एक पहेली की तरह लगता है, तो मैं इसे समझाता हूं। कई अन्य लोगों के साथ मेरा अपना भी अनुभव है कि अगर वह निश्चय कर लेते कि उन्हें फोटो नहीं खिंचवानी है, तो हम कितने भी प्रयास कर लें, फोटो विकसित करने पर रील खाली निकलती। महाशिवरात्रि से दो दिन पहले, जब एक पेशेवर जर्मन फोटोग्राफर ने उन्हें अपने कैमरे में कैद करना चाहा, तो महागुरु ने उससे कहा, “अब से दो दिन बाद मेरी फोटो खींचना। आज मैं यहां मौजूद नहीं हूं”। अपने फोटोग्राफी कौशल के घमंड में चूर उस जर्मन छायाचित्रकार ने एक साथ कई तस्वीरें खींच लीं, लेकिन बाद में उसे पता चला कि महाशिवरात्रि पर उसने जो तस्वीरें ली थीं, वही आई थी, शेष रीलें खाली थीं।

अदृश्य होना एक यौगिक क्रिया है, जिस पर महागुरु को महारत हासिल थी। चाहे वे भीड़ के बीच से भी गुजर जाएं, लेकिन यदि उनकी इच्छा नहीं होती, तो उन्हें कोई नहीं पहचान सकता था।
एक बार श्रीनगर में, राजपाल जी और गुरुदेव अपनी जीप के लिए कुछ पुर्जों की खोज में निकले, जो टूट गए थे। उन्होंने एक दुकान में देखा कि दुकानदार महागुरु की तस्वीर के समक्ष धूप जलाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहा है। यह देखकर, राजपाल जी ने अपने गुरु से फुसफुसाकर कहा कि चूंकि दुकान एक अनुयायी की मालूम पड़ती है, इसलिए उससे खरीदारी करना मुश्किल हो सकता है। दुकान का मालिक उत्पादों की कीमत लेने से इंकार कर देगा, और गुरुजी मुफ्त में कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे।

गुरुदेव ने राजपाल जी की ओर देखा और कहा, “वह केवल तभी भुगतान स्वीकार करने से इंकार करेगा, जब वह हमें पहचानेगा”। निश्चित रूप से, महान गुरु ने उस आदमी के द्वारा पहचाने गए बिना, जो उनकी पूजा करता था, उत्पादों को खरीदा। यह खरीदारी बहुत सहजता से सम्पन्न हो गई।
चूंकि उद्धव जी लगातार महागुरु को अपनी अलौकिकता का प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करते थे, महागुरु ने उन्हें महाशक्तियों के प्रति आकर्षित न होने की सलाह दी। यदि इन शक्तियों को अच्छी तरह से प्रबंधित न किया जाए, तो ये परम-आत्मिक यात्रा में उपलब्धि की बजाय आध्यात्मिक परिवर्तन में बाधा बन सकती हैं। हाल के वर्षों में, अपने आप में डूबे रहने वाले की तुलना में अधिक अनुभवी उद्धव जी कहते हैं, “आप न तो समुद्र को बोतल में कैद कर सकते हैं और न ही एक तस्वीर में विहंगम दृश्यों की विभिन्नता समेत सकते हैं। महागुरु के जटिल और विशाल व्यक्तित्व को समझना बहुत मुश्किल था और शायद ही उनका कोई शिष्य उनकी हकीकत से पूरी तरह वाकिफ हो पाया।”

मन, शरीर और परलोक

गुरुदेव के शरीर-मन का समन्वय अत्यधिक विकसित था। वह भोजन के बिना कई दिनों तक रह सकते थे। महाशिवरात्रि के दौरान, उन्होंने ऐसा प्रदर्शित भी किया, जब तीन या चार दिनों तक उनका आशीर्वाद पाने के लिए आगंतुकों की कतारें लगी रहती थीं। जब तक वह उन सभी से नहीं मिल लेते, अपना व्रत नहीं तोड़ते थे।

वह सर्दी और गर्मी से प्रायः अप्रभावित रहते थे, जब हम बहुत सारे ऊनी कपड़ों में भी कांप रहे होते, उस समय वह एक हल्के कार्डिगन में घूम रहे होते थे।

वह अपनी नींद में एक तरह से हेरफेर कर सकते थे। जब उनका दाहिना शरीर सोता, तो उनका बायां शरीर, शरीर के पूर्ण कामकाज को संभालने के लिए जाग जाता या इसके विपरीत भी होता था। पहलवान जी बताते हैं, “कभी-कभी जब मैंने उनके साथ स्कूटर की सवारी की, तो मैंने उन्हें अपनी आंखें बंद करके स्कूटर चलाते हुए देखा। वह उस समय पाठ कर रहे होते थे।”

वह हमेशा मीठा नहीं बोलते थे, लेकिन उनकी वाणी कठोर भी नहीं थी। वह अल्पभाषी थे और उनमें अपने कहे गए शब्दों से ज्यादा बताने की विलक्षण क्षमता थी। उनकी अद्भुत विनोदप्रियता आध्यात्मिक शार्पनर की तरह थी। हम शायद ही कभी उन बातों में अंतर कर पाए कि वह जो कुछ कह रहे हैं, हमें सिखाने के लिए कह रहे हैं या हम पर चोट कर रहे हैं। उनके पास अपनी बातों को सच करने की क्षमता थी और मैं इसे साबित कर सकता हूं। उनकी वाक् शक्ति में उनकी कभी ‘ना’ ना कहने की क्षमता भी जुड़ी हुई थी। अशोक भल्ला जी अपने गुरु को याद करते हुए कहते हैं कि वह कहते थे कि उनके शब्दकोश में ‘ना’ शब्द नहीं है। शायद, उनका कहने का मतलब यह था कि समस्याएं कितनी भी जटिल हों, महागुरु उनसे घबराते नहीं थे।

गुरुदेव लोगों के भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में पूरी जानकारी के साथ निरंतर जागरूकता में रहते थे। जैसा कि उन्होंने चंड़ीगढ़ के एक सेवादार दास साहब से कहा था, ”जब लोग मुझसे मिलने आते हैं, मैं अपने दिमाग में एक स्क्रीन देखता हूं जहां उसके अतीत, वर्तमान और भविष्य तेजी से चल रहे होते हैं। मैं यह भी बता सकता हूं कि वे विश्वास के साथ आए हैं या सिर्फ मनोरंजन के लिए।“ उनकी नियति और समय पर ऐसी पकड़ थी कि इसे समझाया नहीं जा सकता। वह हमारे कर्मों को समाप्त कर सकते थे, हमारे संस्कारों को बदल सकते थे, हमारे भविष्य के जीवनकाल से कुछ साल निकालकर वर्तमान जीवन में जोड़ सकते थे, आदि।

आध्यात्मिक प्रभुत्व

महागुरु का आध्यात्मिक ज्ञान अद्वितीय था। उच्चतम लोकों के या उससे आगे के अध्यात्मवादी होने के नाते, उन्हें आत्माओं की दुनिया में महारत हासिल थी और वे कई तरह से उनकी मदद भी कर सकते थे। उनके पास उन्हें निचले लोकों से हटाकर उच्च लोकों में पहुंचाने की शक्ति थी। यदि वह किसी आत्मा को चुनते थे, तो उसे पृथ्वी पर जन्म दे सकते थे ताकि वे उनके मानव रूप का उपयोग आध्यात्मिक परिपक्वता के लिए कर सकें। सबसे महत्वपूर्ण बात, उन्होंने आत्माओं को उनके मानव रूपों में सच्चे परम-आत्मिक स्वरूप की ओर बढ़ने में मदद की।

वह अपनी इच्छानुसार सूक्ष्म शारीरिक यात्राएं कर सकते थे और वह हमें अपनी कुछ सूक्ष्म शारीरिक यात्राओं पर साथ भी ले गए। इस तरह के कई अनुभवों के बीच, उनके साथ पेरिस के पुल पर जाना और एक बेड़े में जल यात्रा करना, जिसमें हमारे साथ उनके एक सम्मानित मित्र भी थे, मेरी स्मृति में अब भी तक ताजा हैं।

वह विभिन्न ग्रहों की लंबी दूरी की यात्राएं कर सकते थे। यही कारण है कि कुछ सूक्ष्म शारीरिक यात्राओं में कई घंटे लग जाते थे। एक रात पाठ के लिए जाने से पहले, उन्होंने मुझसे कहा, “चलो मैं तुम्हें ब्रह्माण्ड की यात्रा पर ले जाता हूं”। ब्रह्माण्ड का मतलब चांद पर जाना और वापस आना नहीं था। उनका तात्पर्य पूरी आकाश गंगा से था। उन्होंने पेशकश की, लेकिन मैंने गड़बड़ कर दी। उस रात जब मैं सो रहा था, तब पूरन जी मुझे बताने आए कि गुरुदेव मुझे बुला रहे हैं। यह एहसास करने की बजाय कि मुझसे बात करने वाला शरीर पूरनजी का सूक्ष्म स्वरूप है और मुझे उनके साथ सूक्ष्म शारीरिक यात्रा करनी है, मैं शारीरिक रूप से उठा और गुरुदेव के कमरे में गया, तब मुझे महसूस हुआ कि उनका शरीर वहां पड़ा था, लेकिन वह जा चुके थे। पूरन जी, अपने शारीरिक रूप में, गुरु के पलंग के पास उनके पैर पकड़े हुए बैठे थे। ऐसी ही एक सूक्ष्म अभियान की बात सुरेंद्र कौशल जी को याद है, जिसमें उनके गुरु ने उन्हें एक-एक करके सभी ग्रहों की यात्रा कराई थी।

संतलालजी याद करते हैं कि कैसे उन्हें, अमीचंद जी और बख्शी जी को सूक्ष्म लोकों का भ्रमण सिखाया गया था। गुरुदेव उन्हें एक यात्रा पर ले गए और उनसे कहा कि वे अपने-अपने घरों को चले जाएं लेकिन अपने परिवार को इस बारे में न बताएं, सुबह होने से पहले वह अपने शरीर में लौट आएंगे। संतलाल जी और बख्शी जी वापस लौट आए, परंतु अमीचंद जी अपना रास्ता भूल गए और गुरुदेव को उन्हें लाना पड़ा। जब वे अपनी सूक्ष्म शारीरिक यात्रा पर हों और यदि किसी आपातस्थिति में गुरु के भौतिक हस्तक्षेप की जरूरत होती, तो ऐसी स्थिति में केवल माताजी ही उन्हें उनके भौतिक स्वरूप में वापस ला सकती थीं। उन्होंने उन्हें सिखाया था कि कैसे उनके दोनों अंगूठों को एक साथ रखकर, उनके पैरों को खींचना है। उन्होंने उन्हें बताया था, “जहां की मैं यात्रा पर हूं, उस आधार पर मुझे लौटने में तीन मिनट लग सकते हैं।”

महागुरु सेवा में अपने सूक्ष्म शरीर से भी सेवा करा सकतें थे औरउन्होंने कराई भी। सूक्ष्म शारीरिक यात्राओं के अलावा, उन्होंने हमें सपनों और दृश्यों में संदेश दिए, हमें स्वस्थ किया, हमें अपना भविष्य दिखाया, हमारे अतीत का पता लगाया और हमें पवित्र तीर्थों और संत सभाओं में ले गए। वह स्वप्नदोष की स्थिति में शारीरिक रूप से हमारे साथ होने वाली प्रतिकूल घटनाओं को बदल सकते थे, जिससे शारीरिक रूप से इसके फिर कभी होने की संभावना समाप्त हो जाती।

गुरुदेव ने उन्नत और शक्तिशाली जीवात्माओं के साथ गठबंधन किया ताकि वे संयुक्त रूप से प्राणी जगत की सेवा कर सकें। भृगु संहिता, देवताओं के चिकित्सक अश्विन कुमारों के साथ इनके गठबंधन की ओर इशारा करती है। उनके कुछ अन्य आध्यात्मिक सहयोगियों में शिर्डी साईं, गुरु नानक, गुरु गोबिंद सिंह, परशुराम जी, शिव के कई रूप, कुछ मुस्लिम संत, भगवान कृष्ण, गुरु वशिष्ठ, दत्तात्रेय, महाकाली, लक्ष्मी, सरस्वती, रेणुका देवी, गणपति और हनुमान शामिल हैं। महागुरु के गुरु के रूप में, बुड्डे बाबा का योगदान अवर्णनीय है।

गुरुदेव ने एक साथ कई लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए कई निर्माण कायाएं या सूक्ष्म ऊर्जा विकसित की थीं। उनके कई शिष्यों की भी निर्माण काया हैं। अपनी निर्माण काया के बारे में मुझे सचेत रूप से जानकारी नहीं है, लेकिन यह लोगों के सपनों में दिखाई देती है। इसने उन्हें स्वस्थ किया है, उनकी समस्याओं का हल दिया है और कभी-कभी उन्हें मंत्र भी दिए हैं, जो मैंने पहले कभी नहीं सुने थे।

इस दुनिया को विदा कहने से पूर्व ही महागुरु ने नजफगढ़ में अपनी समाधि का निर्माण शुरू कर दिया था। उनके देहावसान के तीस वर्षों के बाद भी, उन्हें वहां देखा गया है, लेकिन उतनी निरंतरता में नहीं, जितना उनके कुछ भक्त चाहते हैं।

अनावरण

महागुरु अपनी अलौकिक क्षमताओं को सार्वजनिक करने में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने सादगी और विनम्रता के मानवीय गुणों को अपनाया और अपना जीवन अत्यन्त साधारण तरीके से जिया। उन्हीं की शैली को अपनाते हुए, मैंने उनके अद्भुत चमत्कारों को बहुत ही संयत तरीके से रेखांकित किया है ताकि आप उनके जीवन के मूल विषय – आपके आध्यात्मिक परिवर्तन की सक्रियता और सक्षमता से अभिभूत न हों। उन्होंने उस सेवा में अपनी हर शक्ति का उपयोग किया, अपने नजरिये के आधार पर, आपने उनमें या तो साधारण इंसान को देखा या असाधारण महागुरु को।

53 वर्ष की उम्र में जब लोग अपनी जीवन भर की कमाई का आनंद लेने के बारे में सोचते हैं, गुरुदेव ने इस नश्वर जीवन का त्याग कर, अपने अलौकिक निवास पर वापस जाने का विकल्प चुना। तब तक, महागुरु ने पिछले 500 वर्षों के अपने शिष्यों को इकट्ठा किया, उन्हें शिव-परिवार की प्रतिष्ठित शक्तियां दीं और उनको सिद्ध गुरुओं के रूप में विकसित किया। उनका आध्यात्मिक संयोजन गुरुदेव की पूर्व-निर्धारित योजना थी, मानो गुरुदेव ने नियति के ‘प्रशिक्षित को प्रशिक्षण’ देने के कार्यक्रम का चुनाव किया हो!

महागुरु की अलौकिकता उनकी नियति तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने अपनी अलौकिकता को व्यक्त करने के लिए अपनी नियति को सीमित किया। उनकी असीमता अभी भी देश भर में उनके स्थानों और नजफगढ़ में उनकी समाधि पर महसूस की जाती है। वे अदृश्य सही परन्तु एक गोचर शक्ति हैं।