महागुरु
सतत प्रक्रिया
अगर जूल्सवर्ने गुरुदेव से मिलते, तो वह अपनी पुस्तक को नया नाम देते, ‘अराउंड द वर्ल्ड इन एट मिनट्स’। यही वह समय है, जिसमें महागुरु ने सूक्ष्म शरीर में पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा लिया था ।
गुरुदेव को सभी लोकों का ज्ञान था। उन्होंने हमें भी इन लोकों की सैर कराई। बाद में हमने गुरुदेव द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलते इस माध्यम पर कई और प्रयोग किए। समय के साथ, मैं और मेरे कुछ गुरु भाई सूक्ष्म शारीरिक यात्रा में अनुभवी हो गए और हमें कई रहस्यों का ज्ञान हुआ, जिसने जीवन और मृत्यु के प्रति हमारे दृष्टिकोण को बदल दिया।
अपने शरीर से बाहर यात्रा करने के अनुभवों में, मैंने फ्रांस की यात्रा की और सीन नदी पर बने एक पुराने, लगभग जीर्ण-शीर्ण हो चुके पुल पर गुरुदेव से मिला। एक अन्य अवसर पर, मैं गुरुदेव के साथ एक अन्य नदी पर गया, जहां लट्ठों के बेड़ों पर नौकायन करते हुए उन्होंने मुझे ऐसे व्यक्ति से मिलवाया, जिसका वे बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने मेरे एक गुरु भाई को भी शरीर की बाह्य यात्रा का अनुभव कराया, जिसमें मेरे गुरु भाई ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रय ऊर्जा का प्रत्यक्ष साक्षात्कार किया।
एक छोटे से गांव के एक साधारण व्यक्ति को इतनी आध्यात्मिक शक्ति कैसे प्राप्त हुई की वह अपनी मर्जी से सूक्ष्म शारीरिक यात्राएं करने लगे
गुरुदेव ने कभी भी आध्यात्म की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी। वह पढ़ाई में अच्छे नहीं थे, अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए उन्हें हरदम संघर्ष करना पड़ता था। माताजी बताती हैं कि उन्होंने उन्हें केवल जासूसी उपन्यास पढ़ते देखा था। फिर भी, उन्हें ब्रह्मांडीय ज्ञान हुआ और उन्होंने सरल शब्दों में आत्मबोध का मार्ग स्पष्ट किया।
उनसे बेहतर इस विषय को कोई नहीं जानता था। उनका ज्ञान धर्मग्रंथों पर नहीं, बल्कि सहज ज्ञान पर आधारित था।
गुरुदेव का प्रशिक्षण अनुभवजन्य था। उन्होंने हमारे सामने आध्यात्मिकता के रहस्यों का खुलासा किया लेकिन कुछ रहस्यों को अपने भीतर ही रखा। आखिरकार वह एक रहस्यमय इंसान थे। उन्होंने हमें सहारा दिया, लेकिन मार्ग खुद तय करने को कहा। उन्होंने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर आध्यात्मिक खोज करने में हमारी बहुत सहायता की।
उनके छोटे-छोटे वाक्यों में दिए गए उनके ज्ञान का खुलासा हमें दशकों बाद हुआ। वे जानते थे कि एक दिन अगली पीढ़ी इसे समझने में सफल होगी।
उन्होंने विलासिता की अपेक्षा कठिनाई का जीवन चुना, क्योंकि वो यह रहस्य जानते थे जो आज मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं – विलासिता, आध्यात्मिकता की पूंजी को कम करती है। गुरुदेव का एकमात्र उद्देश्य अपनी ऊर्जा का संरक्षण करना था, ताकि इसका उपयोग अन्य प्राणियों के जीवन को बेहतर और समृद्ध बनाने के लिए किया जा सके। हम भी उसकी बचत के लाभार्थी बन गए और हमने उनके नाम से हजारों लोगों की सेवा की।
गुरुदेव की आध्यात्मिक बचत ने उन्हें पृथ्वी और पृथ्वी से ऊंचे अनेक लोकों के सबसे धनी व्यक्तियों से भी अधिक धनी बना दिया। और उनकी कमाई उनके देह त्याग के पश्चात भी उनकी सबसे अमूल्य संपत्ति बनी रही!
गुरुदेव ने इतने कम समय में इतना सब कैसे प्राप्त किया?
यह तर्क दिया जा सकता है कि गुरुदेव की इस आध्यात्मिक महासफलता में सहायता करने के लिए एक अद्भुत पटकथा लेखक था। उनके पास एक मिशन था और भाग्य ने उसे पूरा करने में उनकी पूरी मदद की। हालांकि, इस प्रश्न का सरल उत्तर है – उन्होंने अपने अन्तर्मन में झांका।
गुरुदेव ने हमेशा कहा कि हमारी जीवात्मा परमात्मा का स्वरूप है। उन्होंने एक बार एक शिष्य से कहा कि जब कोई अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मन्दिर जाता है, तो वह मंदिर की ऊर्जा नहीं होती, जो उसकी मनोकामना की पूर्ति करती है। वास्तव में, यह उसके भीतर मौजूद सर्वोच्च चेतना अर्थात आत्मा का अंश है, जो उस इच्छा को पूरा करता है।
मैं हमेशा मानता था कि उनकी निगरानी में होने वाले उपचार और चमत्कार प्रासंगिक थे। उनका असली उद्देश्य हमें याद दिलाना था कि हम वास्तव में हैं कौन। अपनी तरफ से, उन्होंने हमारे भीतर छिपी दिव्यता को तब तक हवा दी, जब तक कि हमें अपने दिव्य होने का एहसास नहीं हो गया। उन्होंने हमें निर्देश दिया कि किसी भी देवता के सामने कभी न झुकें। हम उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित कर सकते हैं, लेकिन खुद को उनके प्रति कभी हीन नहीं देख सकते। हमने दर्पण में जो देखा वह समय के साथ अपूर्ण प्रतिबिंब से बदलकर दिव्य हो गया था।
गुरुदेव ने हम सभी में गुरु तत्व (गुरु का पहलू) को जागृत किया। उसके बाद उन्होंने कई और लोगों में उस तत्व को जगाने के लिए हमें माध्यम बनाया।
उनका दार्शनिक मार्ग सरल था। उनका गंतव्य था सर्वोच्च चेतना से मिलाप और अंततः स्वयं का विघटन।
उन्होंने हमें भीतर की ओर जाने का मार्ग दिखाया, और हमें हमारे स्रोत से मिलाया। उनकी कृपा से, हमें अपना रास्ता मिला।
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