THE MAHAGURU
A Spiritual Tree Takes Roots

Quote

सैकड़ों संतों को दे शक्ति दान।

बना दिए उनके घर मंदिर समान।

दुनिया की नसों में रक्त बन बहता है दर्शन जिसका

नाम उसी का ले लोग करते हैं आज भी सेवा।

जैसे-जैसे गुरुदेव का आध्यात्मिक परिवार बढ़ने लगा, वह अपने शिष्यों के घरों में, सहायता और उपचार के लिए स्थान स्थापित करने की एक नई अवधारणा के साथ आए।

1973 में, गुरुदेव ने दिल्ली के शादीपुर में मल्होत्रा ​​जी के निवास पर सेवा शुरू की। एक साल बाद, सेवा को गुड़गांव के शिवपुरी में गुरुदेव के घर में स्थानांतरित कर दिया गया। माता जी ने इस कदम के पीछे की दिलचस्प घटना मेरे साथ साझा की थी। उस वर्ष, रोहतक, हरियाणा की दो महिलाएँ, गुरुदेव के शिवपुरी निवास पर उनका नाम पूछते हुए पहुँचीं। उन्होंने गुरुदेव को सूचित किया कि वे गुरुवार को चमत्कार करने वाले व्यक्ति से मिलने आयीं थीं। गुरुदेव ने जवाब दिया कि वही वह व्यक्ति हैं जिसे वे मिलना चाहती हैं लेकिन वह कोई चमत्कार नहीं करते। महिलाएं चली गयीं और कुछ दिनों बाद,  एक बार फिर अपनी मदद के अनुरोध के साथ वापस आयीं। इस बार, गुरुदेव ने चालीस दिन बाद पहले गुरुवार को स्थान पर आने  के लिए कहा।

चालीस दिनों के बाद जब वे वापस आयीं, तो उन महिलाओं में से एक ने गुरुदेव से कहा कि उनके गुरु ने उन्हें जो शाप दिया है उससे मुक्त होने में उनकी मदद चाहती है। उसने बताया कि जब वह चार महीने की गर्भवती थी, उसके गुरु उनके घर आए। उनके पति ने कहा कि गुरु की कृपा से उनकी पत्नी गर्भवती है, उन्होंने अपनी पत्नी से अपने गुरु का आभार व्यक्त करने के लिए कहा। जब उसने गुरु से पूछा कि वह उसके लिए क्या कर सकती है, तो उसके गुरु ने जवाब दिया कि चूंकि उसकी कोई सांसारिक इच्छाएँ नहीं हैं, इसलिए वह उन्हें अपने अगले पड़ाव के लिए बस का किराया दे सकती हैं। किन्हीं अंजान कारणों से, उस महिला ने पैसे नहीं दिए। क्रोधित गुरु ने उसे शाप दिया, “तुम हमेशा वैसी ही रहोगी जैसी तुम हो!”

कुछ ही समय बाद उसका गर्भपात हो गया।

अभिशाप बहुत प्रभावी साबित हुआ। हर साल, महिला गर्भवती होती लेकिन चौथे महीने में उसका गर्भपात हो जाता था। जिस साल वह गुरुदेव के पास आई, वह फिर से गर्भवती थी, वह उनकी सुरक्षा चाहती थी ताकि अजन्मा शिशु बच जाए। जब वह अपनी कहानी सुना रही थी, उसी समय महिला के गुरु की आत्मा (भावना) ने स्थान में प्रवेश किया और उसके एक हिस्से को आग लगा दी। गुरुदेव द्वारा आग की लपटों को बुझाने के बाद, महिला के गुरु की आत्मा ने उन्हें शाप को न तोड़ने के लिए कहा। गुरुदेव ने महिला के गुरु को सूचित किया कि वह अपनी इच्छा से स्थान  में आयी है, तो वह उसे मना नहीं कर सकते।

महिला के गुरु की आत्मा ने गुरुदेव से कहा कि वह  महिला को उसके आश्रम में क्षमा मांगने के लिए (एक धर्मोपदेश) जाने को कहें। गुरुदेव ने यह संदेश उसे दे दिया, लेकिन साथ ही सावधान भी किया कि जब वह अपने किये की माफी मांगने के लिए वहां जाए तो आश्रम में किसी से भी कुछ भी स्वीकार न करे।

जब महिला अपने गुरु के आश्रम में गई, तो उसने गुरुदेव के निर्देश की अवहेलना करते हुए दिए गये तावीज (लॉकेट) को पहन लिया। उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की जल्द ही मृत्यु हो गई।

सिद्ध गुरु के वचन
अमूल्य होते हैं!

शिवपुरी में जब सेवा शुरू हुई, तो लोग अपनी परेशानियों से राहत पाने के लिए सप्ताह के सभी दिनों में आते थे। हालांकि, जब भीड़ बढ़ी, तो गुरुदेव ने फैसला किया कि हर महीने की अमावस्या के बाद का पहला गुरुवार, पूरी तरह से सेवा के लिए समर्पित होगा। इस दिन को बड़ा गुरुवार के नाम से जाना जाएगा। बड़ा गुरुवार पर, दुनिया भर में कई स्थानों में एक साथ सेवा की जाती है। इन स्थानों ने उन लोगों की जरूरतों के हिसाब से सेवा का दिन निर्धारित किया हैं। कुछ स्थानों में शनिवार को  सेवा की जाती है, जबकि कुछ अन्य में, रविवार के दिन है।

स्थानों के बढ़ने के साथ ही गुरुदेव के आध्यात्मिक महान कार्य (उद्यम) शहरों, कस्बों, देश और दुनिया के कई स्थानों पर जड़ें जमाने लगा। इसने सेवा के लिए किसी अतिरिक्त आधारभूत ढांचे पर होने वाले खर्च की जरूरत को भी समाप्त कर दिया

गुरुदेव का मानना ​​था कि पुरस्कार, दान या मान्यता की इच्छा के बिना की गयी सेवा,  आध्यात्मिक विकास की कुंजी है। गुरुदेव और उनके शिष्यों द्वारा स्थापित अधिकांश स्थानों में रोगियों से धन या कोई अन्य चीज ग्रहण करना मना है।

गुरुदेव ने अपने कुछ शिष्यों को गुरु के रूप में नियुक्त करके और उन्हें अपनी शक्तियां देकर अपने आध्यात्मिक उद्यम का विस्तार करना शुरू किया। कई अन्य लोग उनके शिष्यों के शिष्य बन गए। उन्होंने एक बहुस्तरीय आध्यात्मिक संरचना तैयार की, लेकिन कभी भी सटीक संबंध का खुलासा नहीं किया।

वह परिश्रम, अभ्यास और बूढ़े बाबा के मार्गदर्शन से तथा अपने आध्यात्मिक ज्ञान से अगले गण की खोज कर एक गुरु से महागुरु बन गये। आखिरकार, एक व्यक्ति ने, अनेकों व्यक्तियों को खोजकर एक ऐसी दुनिया रची, जिसमें प्रत्येक खुद को बनाए रखने में सक्षम है।